गारंटी का अनुबंध क्या है? समझें नियम, अधिकार और दायित्व

गारंटी का अनुबंध क्या है? समझें नियम, अधिकार और दायित्व

वाणिज्य और व्यापार के क्षेत्र में लेन-देन करते समय अक्सर कई प्रकार के कानूनी अनुबंधों की आवश्यकता होती है। “गारंटी का अनुबंध” (Contract of Guarantee) एक ऐसा कानूनी साधन है जो विशेष रूप से तीसरे पक्ष की ओर से जिम्मेदारी सुनिश्चित करता है। यह अनुबंध दोनों पक्षों के बीच विश्वास का निर्माण करता है और वित्तीय सुरक्षा प्रदान करता है।

भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 के तहत गारंटी अनुबंध (Contract of Guarantee) धारा 126 से 147 तक विस्तार से वर्णित है। इस अनुबंध में तीन प्रमुख पक्ष होते हैं: देनदार (ऋणदाता), गारंटर और ऋणी। इस लेख में, हम गारंटी अनुबंध की परिभाषा, Contract of guarantee in hindi, इसकी मुख्य विशेषताओं, इसके प्रकार, भारतीय कानून में इसकी स्थिति और इसके उपयोग के महत्वपूर्ण पहलुओं की विस्तार से चर्चा करेंगे।

गारंटी का अनुबंध: परिभाषा

गारंटी का अनुबंध एक ऐसा कानूनी समझौता है जिसमें एक पक्ष (गारंटर) दूसरे पक्ष (लेनदार) को आश्वासन देता है कि अगर तीसरा पक्ष (कर्जदार) अपने दायित्वों को पूरा नहीं कर पाता, तो वह (गारंटर) उन दायित्वों को पूरा करेगा। यह अनुबंध मुख्य रूप से वित्तीय या वस्तु संबंधी दायित्वों में उपयोग होता है।

उदाहरण (Example)

मान लीजिए, एक व्यक्ति “A” (कर्जदार) एक बैंक से लोन लेता है और “B” (गारंटर) बैंक को आश्वस्त करता है कि अगर “A” लोन का भुगतान नहीं कर पाता, तो “B” बैंक को लोन की पूरी राशि का भुगतान करेगा। इस स्थिति में, “B” और बैंक के बीच गारंटी का अनुबंध होता है, जिसमें “B” गारंटर होता है, बैंक लेनदार और “A” कर्जदार होता है।

गारंटी अनुबंध के पक्षकार

गारंटी के अनुबंध में तीन पक्ष होते हैं:

  1. कर्जदार (Principal Debtor): वह व्यक्ति जो मूल रूप से कर्ज लेता है और जिसे भुगतान करना होता है।
  2. लेनदार (Creditor): वह व्यक्ति या संस्था जो कर्ज देती है और जिसे भुगतान प्राप्त होता है।
  3. गारंटर (Surety): वह व्यक्ति जो लेनदार को यह आश्वासन देता है कि अगर कर्जदार भुगतान नहीं करता, तो वह (गारंटर) भुगतान करेगा।

गारंटी अनुबंध के प्रकार

भारतीय कानून में गारंटी के अनुबंध मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं:

1. वैयक्तिक गारंटी (Personal Guarantee)

यह वह स्थिति होती है जब एक व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से किसी अन्य व्यक्ति या संस्था के दायित्वों की गारंटी देता है। इसका उपयोग आमतौर पर लोन, किराए के अनुबंध, या अन्य वित्तीय अनुबंधों में होता है। वैयक्तिक गारंटी में गारंटर व्यक्तिगत संपत्ति से दायित्व को पूरा करता है।

उदाहरण (Example)

यदि कोई स्टार्टअप कंपनी बैंक से लोन लेना चाहती है, तो बैंक के पास यह जोखिम होता है कि कंपनी लोन चुकाने में विफल हो सकती है। इस स्थिति में कंपनी का निदेशक या संस्थापक व्यक्तिगत रूप से गारंटी देता है कि अगर कंपनी लोन चुकाने में असफल होती है, तो वह व्यक्तिगत रूप से लोन का भुगतान करेगा।

2. कॉर्पोरेट गारंटी (Corporate Guarantee)

इस प्रकार की गारंटी में कोई कंपनी या संगठन किसी अन्य कंपनी या व्यक्ति के दायित्वों की गारंटी देता है। यह आमतौर पर बड़े वित्तीय लेन-देन या व्यापारिक समझौतों में उपयोग किया जाता है।

उदाहरण (Example)

मान लीजिए, एक छोटी कंपनी बड़ी परियोजना में निवेश करना चाहती है, लेकिन उसके पास पर्याप्त संपत्ति नहीं है। इस स्थिति में उसकी पेरेंट कंपनी गारंटी देती है कि अगर छोटी कंपनी अपने दायित्वों को पूरा नहीं कर पाती, तो पेरेंट कंपनी उन दायित्वों को पूरा करेगी।

गारंटी अनुबंध की विशेषताएं

गारंटी के अनुबंध में निम्नलिखित मुख्य विशेषताएं होती हैं:

1. लेखन में अनुबंध (Contract in Writing)

गारंटी का अनुबंध लिखित रूप में होना चाहिए ताकि भविष्य में कोई विवाद होने पर इसे कानूनी रूप से साबित किया जा सके। मौखिक गारंटी भारतीय कानून के तहत मान्य नहीं मानी जाती।

2. स्वतंत्र अनुबंध (Independent Contract)

गारंटी का अनुबंध एक स्वतंत्र अनुबंध होता है, जो कर्जदार और लेनदार के बीच किए गए अनुबंध से अलग होता है। इसका मतलब है कि भले ही कर्जदार और लेनदार के बीच अनुबंध में कुछ बदलाव हो, गारंटी अनुबंध फिर भी मान्य रहेगा।

3. गारंटर की सहमति (Consent of Surety)

गारंटी अनुबंध में गारंटर की सहमति अनिवार्य होती है। यह अनुबंध तब तक मान्य नहीं हो सकता जब तक गारंटर इस अनुबंध में अपनी इच्छा से शामिल न हो।

4. दायित्व की सीमाएं (Limits of Liability)

गारंटी अनुबंध में गारंटर का दायित्व सीमित हो सकता है या असीमित। यह अनुबंध की शर्तों पर निर्भर करता है। अगर अनुबंध में स्पष्ट रूप से सीमा निर्धारित की गई है, तो गारंटर उतने ही दायित्व तक सीमित होगा।

5. कर्जदार की विफलता (Debtor’s Default)

गारंटी अनुबंध तब ही लागू होता है जब कर्जदार अपने दायित्वों को पूरा करने में विफल हो जाता है। अगर कर्जदार समय पर भुगतान कर देता है, तो गारंटर को कोई जिम्मेदारी नहीं उठानी पड़ती।

भारतीय कानून में गारंटी अनुबंध

भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 के तहत गारंटी अनुबंध (Contract of Guarantee) धारा 126 से 147 तक विस्तार से वर्णित है। इस अनुबंध में तीन प्रमुख पक्ष होते हैं: देनदार, गारंटर और ऋणी। नीचे धारा 126 से 147 तक के प्रावधानों को सारांश में तालिका के रूप में प्रस्तुत किया गया है:

धाराशीर्षकविवरण
धारा 126गारंटी अनुबंध की परिभाषागारंटी अनुबंध वह अनुबंध है जिसमें एक पक्ष किसी तीसरे पक्ष के द्वारा किए गए किसी कार्य या ऋण के लिए ज़िम्मेदारी लेता है। इसमें तीन पक्ष होते हैं: ऋणी, गारंटर, और देनदार।
धारा 127प्रतिफल (Consideration) की आवश्यकतागारंटी अनुबंध को वैध बनाने के लिए, इसे उचित प्रतिफल (consideration) द्वारा समर्थित होना चाहिए। गारंटर की सहमति बिना प्रतिफल के अनुबंध को निष्क्रिय बना सकती है।
धारा 128गारंटर की देनदारीगारंटी अनुबंध में गारंटर की देनदारी मुख्य ऋणी के समान होती है। ऋणी के दायित्व को पूरा न करने पर गारंटर को देय होता है।
धारा 129सतत गारंटी (Continuing Guarantee)यह धारा उस गारंटी की बात करती है जो कई लेन-देन के लिए दी जाती है, जब तक कि इसे विशेष रूप से समाप्त नहीं किया जाता।
धारा 130सतत गारंटी का निरस्तीकरणगारंटर किसी भी समय पूर्व में की गई गारंटी को नए लेन-देन के लिए रद्द कर सकता है, लेकिन पुराने लेन-देन के लिए गारंटी बरकरार रहती है।
धारा 131गारंटी का समाप्त होनाजब किसी प्रमुख पक्ष की मृत्यु हो जाती है, तो सतत गारंटी समाप्त हो जाती है, जब तक कि अनुबंध में अन्यथा निर्दिष्ट न हो।
धारा 132संधियों का प्रभावयदि गारंटी अनुबंध में कुछ विशेष शर्तें शामिल होती हैं और उन शर्तों को पूरा नहीं किया जाता, तो गारंटी समाप्त हो सकती है।
धारा 133ऋणी के अनुबंध में परिवर्तनयदि ऋणी और देनदार के बीच अनुबंध की शर्तों में कोई परिवर्तन होता है, तो गारंटर की देनदारी समाप्त हो जाती है।
धारा 134प्रमुख ऋणी के दायित्व का समाप्त होनायदि ऋणी को कानूनी तौर पर उसके दायित्व से मुक्त कर दिया जाता है, तो गारंटर की देनदारी भी समाप्त हो जाती है।
धारा 135समझौता या अतिरिक्त समयअगर देनदार ऋणी को दायित्व पूरा करने के लिए अतिरिक्त समय देता है या ऋणी के साथ कोई समझौता करता है, तो गारंटर की देनदारी समाप्त हो सकती है।
धारा 139गारंटर के अधिकारों पर प्रभाव डालने वाली हरकतेंयदि देनदार कोई ऐसा कार्य करता है जो गारंटर के अधिकारों के साथ असंगत है या गारंटर की सुरक्षा के लिए उचित कार्य नहीं करता, तो गारंटर जिम्मेदार नहीं रहेगा।
धारा 140गारंटर का ऋणी के खिलाफ अधिकारजब गारंटर ने देनदार का भुगतान किया हो, तो उसे उस राशि की वसूली के लिए ऋणी के खिलाफ अधिकार मिल जाता है।
धारा 141गारंटर के अधिकार प्रतिभूतियों परयदि गारंटर ने ऋणी के दायित्व को पूरा किया है, तो उसे ऋणी की संपत्ति या प्रतिभूतियों के संबंध में वही अधिकार प्राप्त होते है।
धारा 142गलत तथ्य द्वारा प्रेरित गारंटीअगर गारंटी अनुबंध गलत या भ्रामक तथ्यों पर आधारित हो, तो वह अनुबंध अमान्य हो सकता है।
धारा 143लापरवाही द्वारा प्रेरित गारंटीअगर गारंटर को लापरवाही से गारंटी के लिए प्रेरित किया जाता है, तो अनुबंध अमान्य हो जाएगा।
धारा 144गारंटी और अनुबंध की सहमतिअगर गारंटर ने शर्तों के साथ गारंटी दी हो और उन शर्तों का पालन नहीं किया जाता, तो गारंटी समाप्त हो जाएगी।
धारा 145गारंटर का मुख्य ऋणी से हकगारंटर, जब किसी दायित्व को पूरा करता है, तो उसे मुख्य ऋणी से उसकी वसूली का हक होता है।
धारा 146एक से अधिक गारंटियों के मामले में जिम्मेदारीजब एक दायित्व के लिए एक से अधिक गारंटर होते हैं, तो उनकी जिम्मेदारी बराबर की होगी।
धारा 147एकाधिक गारंटी (Contribution by Co-Sureties)यदि कई गारंटर हैं और उनमें से एक ने ऋणी का भुगतान किया है, तो अन्य गारंटरों को भी अनुपातिक रूप से योगदान देना होगा।
गारंटी का अनुबंध (Contract of Guarantee) धारा 126 से 147 पर अधिक जानकारी के लिए आप https://www.indiacode.nic.in/ पर जा सकते हैं।

गारंटी अनुबंध का व्यावहारिक उपयोग

वर्तमान व्यापारिक और वित्तीय परिदृश्य में गारंटी अनुबंध का व्यापक उपयोग होता है। चाहे वह व्यक्तिगत लोन हो, कॉर्पोरेट वित्तीय लेन-देन हो या व्यापारिक अनुबंध हों, गारंटी अनुबंध ने खुद को व्यापारिक लेन-देन का अभिन्न हिस्सा बना लिया है। आइए, कुछ प्रमुख क्षेत्रों पर नजर डालते हैं, जहां गारंटी अनुबंधों का उपयोग किया जाता है:

1. बैंक लोन (Bank Loans)

भारतीय बैंकों द्वारा दिए गए अधिकांश लोन गारंटी अनुबंध पर आधारित होते हैं। चाहे वह व्यक्तिगत लोन हो या व्यापारिक लोन, बैंकों को लोन देने से पहले एक गारंटर की आवश्यकता होती है, ताकि वे अपने जोखिम को कम कर सकें। उदाहरण के तौर पर, स्टूडेंट लोन में माता-पिता या अभिभावक को गारंटर के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

2. किरायेदारी (Tenancy Agreements)

किरायेदारी अनुबंधों में भी गारंटी का अनुबंध आम होता जा रहा है। मकान मालिक अक्सर किरायेदार से एक गारंटर की मांग करते हैं ताकि यदि किरायेदार किराया देने में विफल हो, तो गारंटर जिम्मेदारी निभा सके।

3. व्यापारिक अनुबंध (Business Contracts)

वाणिज्यिक व्यापारिक लेन-देन में भी गारंटी अनुबंध का उपयोग किया जाता है। जब दो कंपनियों के बीच कोई बड़ी डील होती है, तो उनमें से एक पक्ष दूसरे पक्ष से गारंटर की मांग कर सकता है ताकि व्यापारिक जोखिम को कम किया जा सके।

4. सरकारी अनुबंध (Government Contracts)

कई बार सरकारी अनुबंधों में भी गारंटी अनुबंध की मांग की जाती है, खासकर जब कोई ठेकेदार सरकारी परियोजना के लिए बोली लगाता है। यह सुनिश्चित करता है कि अगर ठेकेदार अनुबंध की शर्तों का पालन नहीं करता, तो सरकार को नुकसान नहीं होगा और गारंटर उसकी जिम्मेदारी निभाएगा।

गारंटी अनुबंध के लाभ

गारंटी अनुबंध कई फायदे प्रदान करता है, जो इसे वित्तीय लेन-देन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाता है:

  1. वित्तीय सुरक्षा (Financial Security): गारंटी अनुबंध लेनदार (ऋणदाता) को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करता है, क्योंकि गारंटर की मौजूदगी से कर्ज का भुगतान सुनिश्चित होता है।
  2. विश्वास का निर्माण (Building Trust): गारंटी अनुबंध व्यापारिक और व्यक्तिगत लेन-देन में विश्वास पैदा करता है, जिससे दोनों पक्षों को एक-दूसरे पर भरोसा होता है।
  3. वित्तीय लेन-देन को आसान बनाना (Facilitating Financial Transactions): गारंटी अनुबंध के माध्यम से कई व्यापारिक और व्यक्तिगत लेन-देन आसानी से किए जा सकते हैं, जो अन्यथा जोखिमपूर्ण हो सकते थे।

गारंटी अनुबंध के नुकसान

जहां गारंटी अनुबंध के फायदे हैं, वहीं इसके कुछ नुकसान भी होते हैं:

  1. गारंटर के लिए जोखिम (Risk to Surety): यदि कर्जदार अपने दायित्वों का पालन नहीं करता, तो गारंटर को कानूनी और वित्तीय जोखिम का सामना करना पड़ता है।
  2. विवाद की संभावना (Possibility of Disputes): कई बार अनुबंध में स्पष्टता की कमी के कारण विवाद उत्पन्न हो सकते हैं, खासकर जब अनुबंध की शर्तें स्पष्ट नहीं होतीं।
  3. गारंटी के समापन के जटिल नियम (Complex Rules of Termination): गारंटी अनुबंध को समाप्त करने के नियम जटिल होते हैं, जो कभी-कभी गारंटर के लिए परेशानी का कारण बन सकते हैं।

निष्कर्ष

भारतीय कानून में गारंटी अनुबंध (Contract of Guarantee) एक महत्वपूर्ण कानूनी उपकरण है, जिसका उद्देश्य एक व्यक्ति के ऋण या दायित्व को सुनिश्चित करना होता है। यह अनुबंध तीन पक्षों के बीच होता है: कर्जदाता (Creditor), ऋणी (Principal Debtor), और गारंटर (Surety)। इस अनुबंध के तहत गारंटर ऋणी के दायित्व को पूरा करने का वचन देता है, यदि ऋणी इसे पूरा करने में असफल रहता है।

नीचे दी गई तालिका में गारंटी अनुबंध से संबंधित प्रमुख बिंदुओं को स्पष्ट किया गया है:

मुख्य घटकविवरण
परिभाषागारंटी अनुबंध वह अनुबंध है जिसमें एक व्यक्ति (गारंटर) किसी तीसरे व्यक्ति (ऋणी) द्वारा किसी अन्य (कर्जदाता) को भुगतान या प्रदर्शन की गारंटी देता है।
सम्बंधित पक्ष1. कर्जदाता – वह व्यक्ति जिसे धन या सेवा प्राप्त होती है।
2. ऋणी – वह व्यक्ति जो कर्ज या सेवा का दायित्व उठाता है।
3. गारंटर – वह व्यक्ति जो ऋणी की विफलता पर दायित्व पूरा करता है।
गारंटर की भूमिकागारंटर ऋणी के दायित्व की पूर्ति की गारंटी देता है। यदि ऋणी दायित्व पूरा नहीं करता, तो गारंटर को वह दायित्व पूरा करना होता है।
अनुबंध का प्रकारगारंटी अनुबंध एक त्रिपक्षीय अनुबंध है जिसमें तीन पक्ष शामिल होते हैं।
प्रकार1. निरंतर गारंटी (Continuing Guarantee) – जिसमें गारंटर कई लेन-देन की गारंटी देता है।
2. विशिष्ट गारंटी (Specific Guarantee) – एक विशेष लेन-देन के लिए गारंटी।
गारंटर की देयतागारंटर की देयता ऋणी की विफलता पर ही उत्पन्न होती है, और वह केवल उसी हद तक देय होगा जितना ऋणी का दायित्व होता है।
निरसन (Revocation)गारंटर अपनी निरंतर गारंटी को समय पर नोटिस देकर निरस्त कर सकता है, लेकिन पहले से किए गए दायित्वों के लिए वह जिम्मेदार रहेगा।
गारंटर का अधिकारगारंटर के पास ऋणी से हर्जाना पाने का अधिकार होता है, यदि उसने कर्जदाता को ऋणी की जगह भुगतान किया हो।
कानूनी प्रावधानभारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 के तहत गारंटी अनुबंध की शर्तें और प्रावधान निर्दिष्ट किए गए हैं, विशेषकर धारा 126 से धारा 147 के अंतर्गत।
समाप्ति के कारण1. गारंटी अनुबंध पूरा होने पर।
2. कर्जदाता द्वारा ऋणी के साथ कोई नई अनुबंधित शर्तें बनाने पर।
3. गारंटर द्वारा अनुबंध को निरस्त करने पर।

गारंटी अनुबंध के प्रमुख कानूनी पहलू:

  1. कानूनी शर्तें: गारंटी अनुबंध केवल वैध होता है जब वह लिखित हो और सभी संबंधित पक्षों की सहमति से संपन्न हो।
  2. प्रवर्तन क्षमता: यदि ऋणी अपने दायित्व को पूरा करने में विफल रहता है, तो कर्जदाता गारंटर के खिलाफ अदालती कार्यवाही कर सकता है।
  3. ध्यान देने योग्य बातें: गारंटी अनुबंध केवल उन्हीं मामलों में लागू होता है जब ऋणी पहले से मौजूद दायित्वों को पूरा करने में असफल रहा हो। गारंटर का दायित्व केवल उसी सीमा तक सीमित होता है जितना कि ऋणी का दायित्व होता है।

इस तालिका और जानकारी के माध्यम से, गारंटी अनुबंध की संपूर्ण समझ प्राप्त करना आसान हो जाता है। यह एक महत्वपूर्ण कानूनी अनुबंध है जो कर्जदाता के लिए सुरक्षा प्रदान करता है और ऋणी के प्रति विश्वास को बनाए रखता है।

यदि गारंटी अनुबंध का सही तरीके से उपयोग किया जाए, तो यह व्यापारिक और व्यक्तिगत लेन-देन में विश्वास और सुरक्षा को बढ़ावा देता है। हालांकि, अनुबंध में शामिल सभी पक्षों को इसके कानूनी दायित्वों और जोखिमों के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए, ताकि वे सही निर्णय ले सकें।

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