आज हम बात करेंगे NPA (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट) की। यह नाम भले ही तकनीकी लगे, पर आपकी जेब और देश की अर्थव्यवस्था के लिए यह बहुत मायने रखता है। सीधे शब्दों में कहें, NPA बैंकों का वह ‘बुरा कर्ज़’ है जिसकी क़िस्त या ब्याज़ 90 दिन से ज़्यादा समय तक वापस नहीं आया है। यह रुका हुआ पैसा न सिर्फ़ बैंकों को कमज़ोर करता है, बल्कि नए लोन को महंगा बनाकर देश की प्रगति को भी धीमा कर देता है। आइए, एक प्रोफ़ेशनल की तरह, सरल हिंदी में समझते हैं कि यह ‘NPA’ क्या बला है और हम सबको इसकी चिंता क्यों करनी चाहिए!
NPA (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट) क्या है?
NPA का पूरा नाम नॉन-परफॉर्मिंग एसेट है। जब कोई व्यक्ति या कंपनी बैंक से लोन लेकर समय पर किस्तें चुकाने में असफल हो जाती है और 90 दिन से ज्यादा समय तक भुगतान नहीं करती, तो वह लोन NPA कहलाता है।
सीधे शब्दों में कहें, NPA वह क़र्ज़ या लोन है जिसे बैंक ने किसी व्यक्ति या कंपनी को दिया था, पर अब उस पर समय पर ब्याज़ या मूलधन की क़िस्त (EMI) वापस नहीं आ रही है।
RBI (रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया) के नियमों के अनुसार:
- अगर किसी लोन पर 90 दिनों (3 महीने) से अधिक समय तक ब्याज़ या क़िस्त का भुगतान नहीं होता है, तो बैंक उसे “नॉन-परफॉर्मिंग एसेट” (NPA) घोषित कर देता है।
इसे ऐसे समझिए: आपने किसी पौधे को पानी दिया (बैंक ने लोन दिया), पर 90 दिन बाद भी उसमें कोई फल या फूल नहीं आया (क़िस्त या ब्याज़ नहीं आया)। अब वह पौधा नॉन-परफॉर्मिंग हो गया है!
क्यों कहते हैं ‘एसेट’ (Asset)?
यह आपके मन में सवाल ला सकता है कि क़र्ज़ तो लायबिलिटी (देयता) है, फिर बैंक इसे एसेट क्यों कहते हैं?
दरअसल, बैंक के लिए दिया गया लोन एक एसेट होता है, क्योंकि इससे बैंक को भविष्य में ब्याज़ के रूप में आय होने वाली होती है। पर जब यह आय आनी बंद हो जाती है, तब यह एसेट ‘नॉन-परफॉर्मिंग’ हो जाता है।
NPA के प्रकार: जानिए कहाँ-कहाँ फँसते हैं पैसे!
RBI के नियमों के अनुसार, NPA को आगे तीन श्रेणियों में बाँटा जाता है, जो यह दर्शाती हैं कि लोन कितने समय से डूबा हुआ है:
श्रेणी (Category) | परिभाषा (Definition) |
सब-स्टैंडर्ड एसेट (Sub-Standard Assets) | जो एसेट 12 महीने या उससे कम समय से NPA है। |
संदिग्ध एसेट (Doubtful Assets) | जो एसेट 12 महीने से ज़्यादा समय से सब-स्टैंडर्ड श्रेणी में है। |
हानिकारक एसेट (Loss Assets) | वह एसेट, जिसे बैंक या ऑडिटर ने ‘नुकसान’ मान लिया है, और जिसके वसूल होने की संभावना बहुत कम है। |
बड़े NPA संकट में, सरकार को बैंक को डूबने से बचाने के लिए जनता के पैसे (Tax Payers’ Money) का इस्तेमाल करना पड़ता है, जिसे ‘बेलआउट’ (Bailout) कहते हैं। यह पैसा कहीं और, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य या इंफ़्रास्ट्रक्चर में लग सकता था।
NPA क्यों होता है? मुख्य कारण
NPA होने के कई कारण हो सकते हैं, जो व्यक्तिगत से लेकर बड़े बिज़नेस स्तर तक फैले होते हैं:
कारण | उदाहरण और स्पष्टीकरण |
ईमानदारी की कमी | कुछ बड़े कॉरपोरेट जानबूझकर पैसा लौटाना नहीं चाहते (विलफुल डिफॉल्टर)। |
व्यावसायिक विफलता | कंपनी का कारोबार ठप्प हो गया, घाटा हुआ और उनके पास पैसे नहीं बचे। |
आर्थिक सुस्ती | पूरे बाज़ार में मंदी आ गई, लोगों की नौकरी गई या बिज़नेस में बिक्री घट गई। (जैसे COVID-19 के दौरान हुआ)। |
प्रोजेक्ट में देरी | इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट समय पर पूरे नहीं हुए, जिससे आमदनी शुरू नहीं हो पाई। |
बैंकों की ग़लती | बैंक ने बिना ठीक से जाँच-पड़ताल किए (due diligence) ही ख़तरा उठाकर लोन दे दिया। |
NPA अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करता है?
NPA केवल बैंक का सिरदर्द नहीं है, बल्कि यह पूरे देश की अर्थव्यवस्था को कई तरह से प्रभावित करता है:
A. बैंकों की सेहत ख़राब होना
जब NPA बढ़ता है, तो बैंक का पैसा अटक जाता है।
- लाभ में कमी: बैंक का ब्याज़ से होने वाला मुनाफ़ा (Profit) कम हो जाता है।
- पूंजी का संकट: उन्हें NPA के लिए प्रोविजनिंग (Provisioning) करनी पड़ती है, यानी अपने मुनाफ़े का एक हिस्सा अलग रखना पड़ता है। इससे बैंक के पास नया लोन देने के लिए पैसा कम हो जाता है।
B. नए क़र्ज़ पर असर (क्रेडिट क्रंच)
बैंक जब कमज़ोर होते हैं, तो वे नया लोन देने में हिचकिचाते हैं।
- आपके लिए: अगर आप घर या बिज़नेस के लिए लोन लेना चाहते हैं, तो बैंक शर्तें कठिन कर देंगे या ब्याज़ दरें बढ़ा देंगे।
- अर्थव्यवस्था के लिए: बिज़नेस को पैसा नहीं मिलेगा, जिससे नए कारोबार, नई नौकरियाँ और उत्पादन (Production) रुक जाता है। इसे ही आर्थिक सुस्ती का एक कारण माना जाता है।
C. सरकारी सहायता का बोझ
जब NPA हद से ज़्यादा बढ़ जाता है, तो जनता के पैसों से चलने वाले सरकारी बैंकों (PSBs) को बचाने के लिए सरकार को उन्हें पूंजी देनी पड़ती है (Recapitalization)।
- यह पैसा वह होता है जो सरकार आपकी शिक्षा, स्वास्थ्य या इंफ्रास्ट्रक्चर पर ख़र्च कर सकती थी।
यह एक ऐसा दुष्चक्र है जिससे बाहर निकलना ज़रूरी है। NPA की वजह से लाखों करोड़ों की पूंजी लॉक हो जाती है, जो देश के विकास में लग सकती थी।
NPA को कम करने के लिए सरकार और RBI के उपाय
हमारी सरकार और RBI इस समस्या से लड़ने के लिए लगातार कदम उठा रहे हैं:
- IBC (Insolvency and Bankruptcy Code): यह एक शक्तिशाली क़ानून है जो यह सुनिश्चित करता है कि लोन न चुकाने वाली कंपनियों से जल्द से जल्द पैसा वसूला जाए या उन्हें बेच दिया जाए।
- ARC (Asset Reconstruction Company): ये वो कंपनियाँ हैं जो बैंकों से बुरा क़र्ज़ ख़रीदकर उसे वसूलने का काम करती हैं।
- PCA (Prompt Corrective Action): RBI बैंकों पर सख़्ती करती है, जिनकी आर्थिक स्थिति ख़राब होती है, ताकि वे और ग़लतियाँ न करें।
- Bad Bank (National Asset Reconstruction Company Limited – NARCL): यह एक नई पहल है, जो बड़े NPA को एक जगह जमा करके उन्हें कुशलता से सुलझाने का काम करेगी।
इन प्रयासों के कारण, पिछले कुछ सालों में भारत में NPA की दर में गिरावट देखने को मिली है, जो एक सकारात्मक संकेत है।
आपके लिए NPA का महत्व (निष्कर्ष)
एक आम नागरिक होने के नाते आपको NPA की चिंता क्यों करनी चाहिए?
- आपके बैंक की सुरक्षा और स्थिरता दाँव पर होती है।
- देश की अर्थव्यवस्था मज़बूत रहती है, तो आपकी नौकरी और निवेश (Investment) सुरक्षित रहते हैं।
- एक स्वस्थ बैंकिंग प्रणाली से आपको भविष्य में सस्ते और आसान लोन मिलने की उम्मीद बनी रहती है।
याद रखिए, बैंकिंग सिस्टम किसी भी देश की जीवन रेखा होती है। जब तक यह जीवन रेखा मज़बूत है, तब तक देश की तरक़्क़ी का पहिया घूमता रहेगा।
तो, अब अगली बार जब भी आप NPA शब्द सुनें, तो आप एक प्रोफेशनल की तरह इसकी गहराई और महत्व को समझ पाएँगे! अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी, तो इसे अपने दोस्तों और परिवार के साथ ज़रूर शेयर करें।
धन्यवाद और सीखते रहें! 😊