PM 2.5 और PM 10 में क्या अंतर है? आसान भाषा में समझें

PM 2.5 और PM 10 में क्या अंतर है? आसान भाषा में समझें

जब भी हम सुबह उठकर अपनी खिड़की खोलते हैं और बाहर धुंध देखते हैं, तो मन में पहला सवाल यही आता है—”यह कोहरा है या प्रदूषण?” आजकल न्यूज़ चैनल हो या अखबार, हर जगह ‘AQI’ (Air Quality Index) और ‘PM लेवल’ की चर्चा होती है। लेकिन एक आम आदमी के लिए यह समझना थोड़ा मुश्किल हो जाता है कि आखिर ये PM 2.5 और PM 10 हैं क्या?

क्या ये कोई वायरस हैं? क्या ये धूल हैं? और सबसे ज़रूरी बात, इनमें से कौन सा हमारी सेहत के लिए ज्यादा खतरनाक है?

एक जिम्मेदार नागरिक और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक व्यक्ति होने के नाते, आपको इनके बीच का अंतर पता होना बहुत जरूरी है। आज के इस आर्टिकल में हम वैज्ञानिक भारी-भरकम शब्दों के बजाय, बिल्कुल आसान हिंदी में समझेंगे कि ये सूक्ष्म कण क्या हैं और ये आपके शरीर को कैसे प्रभावित करते हैं।

Particulate Matter (PM) क्या होता है?

PM का मतलब होता है—Particulate Matter (पार्टिकुलेट मैटर)। इसे हिंदी में हम ‘कणीय पदार्थ’ कह सकते हैं। आसान भाषा में समझें तो, हवा में मौजूद ठोस और तरल पदार्थों के बहुत छोटे कणों का मिश्रण ही Particulate Matter कहलाता है।

क्या आपने कभी अंधेरे कमरे में रौशनी की एक किरण (Sunbeam) आती देखी है? उस रौशनी में आपको हजारों छोटे-छोटे धूल के कण तैरते हुए दिखाई देते हैं। बस, PM भी कुछ वैसा ही है, लेकिन इनमें से कुछ कण इतने छोटे होते हैं कि उन्हें नंगी आंखों से देखा भी नहीं जा सकता।

वैज्ञानिक इन कणों को उनके आकार (Size) के आधार पर दो मुख्य श्रेणियों में बांटते हैं:

  1. PM 10
  2. PM 2.5

PM 10 क्या है? (मोटा कण)

PM 10 उन कणों को कहा जाता है जिनका व्यास (Diameter) 10 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है। इसे समझाने के लिए एक बेहतरीन उदाहरण लेते हैं—हमारे सिर के एक बाल की मोटाई लगभग 50 से 70 माइक्रोमीटर होती है। इसका मतलब है कि PM 10 हमारे बाल की मोटाई से भी 5 से 7 गुना छोटा होता है।

PM 10 के मुख्य स्रोत:

  • सड़कों से उड़ने वाली धूल।
  • कंस्ट्रक्शन साइट्स (निर्माण कार्य) से निकलने वाली गर्दा।
  • खेती-बाड़ी के दौरान उड़ने वाली धूल।
  • फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआं।

शरीर पर असर:

PM 10 कण सांस के जरिए हमारे शरीर में प्रवेश तो करते हैं, लेकिन इनका आकार थोड़ा बड़ा होता है। इसलिए, हमारे नाक के बाल और गले का म्यूकस (बलगम) इन्हें काफी हद तक रोक लेते हैं। फिर भी, ये गले में खराश, आंखों में जलन और अस्थमा जैसी समस्याएं पैदा कर सकते हैं।

PM 2.5 क्या है? (साइलेंट किलर)

असली खतरा यहीं छिपा है। PM 2.5 उन कणों को कहते हैं जिनका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है। ये कण PM 10 से भी बहुत छोटे होते हैं। अगर हम तुलना करें, तो एक PM 2.5 कण हमारे सिर के बाल की मोटाई का लगभग 3% ही होता है। यानी, एक बाल की चौड़ाई में लगभग 30 से 40 PM 2.5 कण समा सकते हैं!

इन्हें ‘Fine Particles’ या सूक्ष्म कण भी कहा जाता है। ये इतने हल्के होते हैं कि हवा में लंबे समय तक तैरते रहते हैं और आंधी-तूफान के साथ मीलों दूर तक जा सकते हैं।

PM 2.5 के मुख्य स्रोत:

  • गाड़ियों (खासकर डीजल इंजन) से निकलने वाला धुआं।
  • पराली या कचरा जलाने से निकलने वाला धुआं।
  • बिजली संयंत्र (Power Plants)।
  • जंगल की आग और आतिशबाजी।

शरीर पर असर:

PM 2.5 सबसे ज्यादा खतरनाक इसलिए है क्योंकि हमारे शरीर का नेचुरल डिफेंस सिस्टम (नाक और गला) इसे रोक नहीं पाता। ये कण सीधे हमारे फेफड़ों (Lungs) की गहराई तक पहुंच जाते हैं और वहां से हमारे खून (Bloodstream) में मिल जाते हैं। यह हार्ट अटैक, स्ट्रोक और फेफड़ों के कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है।

PM 2.5 और PM 10 में मुख्य अंतर: एक नज़र में

नीचे दी गई टेबल से आप इन दोनों के बीच के फर्क को आसानी से समझ सकते हैं:

विशेषताPM 10PM 2.5
आकार10 माइक्रोमीटर या कम2.5 माइक्रोमीटर या कम
दिखावटधुंध या धूल के रूप में दिख सकता हैनंगी आंखों से नहीं दिखता (Invisible)
तुलनाबाल से 5-7 गुना छोटाबाल से 30 गुना छोटा
पहुंचनाक और गले तक सीमितफेफड़ों और खून तक पहुंच
खतराकम खतरनाक (परेशानी देता है)अत्यंत खतरनाक (जानलेवा हो सकता है)
उदाहरणधूल, मोल्ड, पराग कणवाहनों का धुआं, रासायनिक कण

स्वास्थ्य पर इनके गंभीर प्रभाव

चाहे PM 2.5 हो या PM 10, दोनों ही सेहत के लिए अच्छे नहीं हैं। लेकिन जब AQI (Air Quality Index) खराब होता है, तो आपके शरीर में निम्नलिखित बदलाव आ सकते हैं:

  1. सांस लेने में तकलीफ: अस्थमा और ब्रोंकाइटिस के मरीजों के लिए यह समय किसी बुरे सपने जैसा होता है।
  2. हृदय रोग: PM 2.5 खून में मिलकर नसों को ब्लॉक कर सकता है, जिससे हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है।
  3. बच्चों पर असर: बच्चों के फेफड़े अभी विकसित हो रहे होते हैं, इसलिए प्रदूषण का उन पर सबसे बुरा असर पड़ता है। इससे उनकी फेफड़ों की क्षमता (Lung Capacity) हमेशा के लिए कम हो सकती है।
  4. आंखों और त्वचा में जलन: लगातार प्रदूषण के संपर्क में रहने से स्किन एलर्जी और आंखों से पानी आने की समस्या होती है।

बचाव के उपाय: हम क्या कर सकते हैं?

प्रदूषण एक ऐसी समस्या है जिसे रातों-रात खत्म नहीं किया जा सकता, लेकिन हम अपना बचाव जरूर कर सकते हैं।

  • मास्क का सही चुनाव: जब प्रदूषण का स्तर (AQI) ज्यादा हो, तो सामान्य कपड़े का रूमाल काम नहीं आएगा। आपको N95 या N99 मास्क का उपयोग करना चाहिए जो PM 2.5 कणों को भी छान सकता है।
  • एयर प्यूरीफायर (Air Purifier): अगर आप बहुत ज्यादा प्रदूषित शहर में रहते हैं, तो घर के अंदर HEPA फिल्टर वाला एयर प्यूरीफायर एक अच्छा निवेश हो सकता है।
  • सुबह की सैर से बचें: जब धुंध ज्यादा हो, तो सुबह की वॉक या आउटडोर एक्सरसाइज से बचें। घर के अंदर ही योगा या व्यायाम करें।
  • इंडोर प्लांट्स: अपने घर में स्नेक प्लांट, एरेका पाम या स्पाइडर प्लांट लगाएं। ये पौधे नेचुरल एयर प्यूरीफायर का काम करते हैं।
  • Apps का इस्तेमाल करें: घर से निकलने से पहले अपने फोन पर आज का AQI चेक करने की आदत डालें।

निष्कर्ष

PM 2.5 और PM 10 सिर्फ आंकड़े नहीं हैं, यह इस बात का सूचक हैं कि हम किस तरह की हवा में सांस ले रहे हैं। जहाँ PM 10 धूल और गर्दा है जो हमें परेशान करता है, वहीं PM 2.5 एक अदृश्य दुश्मन है जो धीरे-धीरे हमारे शरीर को खोखला कर रहा है।

एक जागरूक नागरिक होने के नाते, न केवल हमें अपना बचाव करना चाहिए, बल्कि प्रदूषण कम करने में भी योगदान देना चाहिए—जैसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करना और कचरा न जलाना। याद रखिये, सांस है तो आस है।

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