रूस से कच्चे तेल का आयात भारत के लिए कैसे फायदेमंद है

रूस से कच्चे तेल का आयात भारत के लिए कैसे फायदेमंद है

दोस्तों, कल्पना कीजिए कि आपकी कार का ईंधन अचानक सस्ता हो जाए, लेकिन सिर्फ इसलिए नहीं कि बाजार गिरा, बल्कि एक स्मार्ट फैसले की वजह से। यही तो हो रहा है भारत के साथ रूस से कच्चे तेल के आयात के जरिए। 2022 में यूक्रेन संकट के बाद जब दुनिया ने रूस को अलग-थलग करने की कोशिश की, तब भारत ने मौके को लपक लिया।

आज रूस हमारा सबसे बड़ा तेल सप्लायर बन चुका है, और ये रिश्ता सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि हमारी ऊर्जा स्वतंत्रता की कहानी है। एक आम भारतीय के तौर पर सोचिए – पेट्रोल पंप पर लाइन लगे बिना, महंगाई का बोझ कम हो, ये कितना राहत भरा है! इस लेख में हम सरल शब्दों में समझेंगे कि रूस से कच्चा तेल का आयात भारत के लिए कैसे फायदेमंद साबित हो रहा है। आइए, गहराई में उतरें।

भारत की तेल भूख: क्यों इतना जरूरी है आयात?

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक और उपभोक्ता है। हमारी लगभग 88 प्रतिशत तेल जरूरतें विदेशों से पूरी होती हैं। घरेलू उत्पादन तो महज 12-15 प्रतिशत ही कवर करता है। तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था, लाखों गाड़ियां सड़कों पर, फैक्टरियां रात-दिन चल रही – ये सब तेल पर निर्भर हैं। अगर आयात महंगा पड़े, तो पेट्रोल-डीजल की कीमतें आसमान छू लेंगी, और महंगाई का जाल आम आदमी को जकड़ लेगा।

बिंदुमध्य-पूर्व से तेलरूस से तेल
औसत कीमतज्यादाकम
भुगतान व्यवस्थाडॉलर मेंरुपये और अन्य मुद्राओं में संभव
सप्लाईस्थिरडिस्काउंट के साथ लचीली

रूस से आयात ने इस निर्भरता को एक मजबूत ढाल दे दिया है। 2022 से पहले रूस से हमारा आयात न के बराबर था – महज 0.2 प्रतिशत। लेकिन अब? 2025 में ये 35-40 प्रतिशत तक पहुंच गया है। जून 2025 में तो हमने रोजाना 2.08 मिलियन बैरल तेल रूस से खरीदा, जो 11 महीनों का रिकॉर्ड है। ये आंकड़े सिर्फ नंबर नहीं, बल्कि लाखों परिवारों की जेब बचाने वाली कहानी हैं। सोचिए, अगर ये सस्ता तेल न मिलता, तो ईंधन कीमतें कितनी चढ़ जातीं!

रूस से सस्ते क्रूड का जादू: आर्थिक फायदे जो गिनाए नहीं गिनाए जाते

सबसे बड़ा फायदा तो कीमत का है। यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों ने रूस को मजबूर कर दिया कि वो तेल सस्ते दामों पर बेचे। यूरोपीय संघ की 60 डॉलर प्रति बैरल कीमत सीमा के तहत रूसी तेल बाजार से 10-20 डॉलर सस्ता मिल रहा है। 2025 में औसत छूट 6-13 प्रतिशत रही। नतीजा? भारत ने 2022 से अब तक कम से कम 17 अरब डॉलर (करीब 1.42 लाख करोड़ रुपये) की बचत की है।

ये बचत सिर्फ आंकड़ों में नहीं, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी में दिखती है। पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतें स्थिर रहीं, जबकि वैश्विक बाजार में उतार-चढ़ाव जारी था। अगर रूस का तेल न होता, तो तेल बिल में 9-11 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हो जाती। एक उदाहरण लीजिए – 2024-25 में भारत का कुल तेल आयात बिल 1.14 लाख करोड़ रुपये का था। रूसी आयात ने इसे 20-25 प्रतिशत कम रखा। ये पैसे सरकार के पास आए, जिनसे सब्सिडी, इंफ्रास्ट्रक्चर और कल्याण योजनाओं को बल मिला।

एक और रोचक तथ्य: रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसी निजी कंपनियां रूसी तेल के 50 प्रतिशत तक आयात कर रही हैं। जामनगर रिफाइनरी में रूसी क्रूड को रिफाइन कर हम डीजल-जेट फ्यूल एक्सपोर्ट कर रहे हैं। 2025 के पहले सात महीनों में 18.3 मिलियन टन रूसी तेल से बने प्रोडक्ट्स का निर्यात 97 अरब डॉलर का हुआ। यूरोप और अमेरिका को ही 25 अरब डॉलर का सामान बेचा! ये विडंबना है कि वो देश जो रूस को सजा दे रहे हैं, वो हमसे ही सस्ता ईंधन खरीद रहे हैं। लेकिन फायदा हमारा – विदेशी मुद्रा बढ़ी, व्यापार घाटा कम हुआ।

ऊर्जा सुरक्षा का किला: विविधीकरण से मजबूत भारत

तेल आयात में एक ही स्रोत पर निर्भरता खतरे की घंटी है। मध्य पूर्व के तनाव – जैसे इजरायल-ईरान संघर्ष – से कीमतें उछाल मार सकती हैं। रूस ने ये जोखिम कम किया। अब हमारा आयात मेनू विविध है: रूस (40%), इराक (18%), सऊदी (10%), अमेरिका (6%)। 2025 में अमेरिका से आयात 50 प्रतिशत बढ़ा, लेकिन रूस बेस रहा।

ये विविधीकरण लॉजिस्टिक्स को भी आसान बनाता है। रूसी तेल वैकल्पिक शिपिंग रूट्स से आता है, बीमा नेटवर्क मजबूत। नायरा एनर्जी जैसी कंपनियां 72 प्रतिशत रूसी तेल इस्तेमाल कर रही हैं। नतीजा? सप्लाई चेन मजबूत, कोई अचानक कमी नहीं। वैश्विक स्तर पर भी फायदा: भारत के आयात ने रूसी तेल को अवशोषित कर वैश्विक कीमतों को 100 डॉलर प्रति बैरल से नीचे रखा। अगर हम न खरीदते, तो महंगाई की आग लग जाती!

रिफाइनिंग और निर्यात का डबल बोनस: कंपनियों की कमाई, देश की ताकत

भारतीय रिफाइनरियां रूसी ‘सॉर’ और हेवी क्रूड के लिए परफेक्ट हैं। हम इसे रिफाइन कर हाई-वैल्यू प्रोडक्ट्स बनाते हैं – डीजल, पेट्रोल, एविएशन फ्यूल। रिफाइनिंग मार्जिन 12-15 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचे। 2024-25 में पेट्रोलियम निर्यात 63 अरब डॉलर का हुआ, जिसमें रूसी क्रूड का बड़ा हाथ।

सरकारी कंपनियां जैसे IOC, BPCL थोड़ी पीछे रहीं, लेकिन निजी क्षेत्र ने बाजी मारी। कुल मिलाकर, रिफाइनरियों को विंडफॉल प्रॉफिट मिले – अरबों रुपये। लेकिन ये प्रॉफिट देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करते हैं। टैक्स से सरकार को 2.7 लाख करोड़ रुपये सालाना मिलते हैं। अप्रैल 2025 में एक्साइज ड्यूटी बढ़ोतरी से 32,000 करोड़ अतिरिक्त आए। आम आदमी को लगे कि कीमतें नहीं गिरीं, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से महंगाई कंट्रोल हुई।

चुनौतियां और भविष्य: ट्रंप की धमकी से डरें नहीं

सब कुछ गुलाबी नहीं। अमेरिका के ट्रंप प्रशासन ने 500 प्रतिशत टैरिफ की धमकी दी है। लेकिन भारत झुकेगा नहीं। हमारी विदेश नीति रणनीतिक स्वायत्तता पर टिकी है। रूस से आयात G7 कीमत कैप के अंदर है, कोई प्रत्यक्ष प्रतिबंध नहीं। अगर रुक गए, तो वैश्विक सप्लाई 1 मिलियन बैरल प्रतिदिन कम हो जाएगी, कीमतें 200 डॉलर तक चढ़ सकती हैं।

भविष्य में? हम मध्य पूर्व, अमेरिका, ब्राजील से बैलेंस करेंगे। लेकिन रूस का रोल बरकरार रहेगा। सस्टेनेबल एनर्जी की ओर बढ़ते हुए, ये आयात हमें समय दे रहा है।

तुलनात्मक नजरिया: रूस vs अन्य स्रोत

नीचे एक सरल टेबल से समझिए कि रूस कैसे अलग है:

स्रोतहिस्सेदारी (2025)औसत छूट (डॉलर/बैरल)मुख्य फायदा
रूस35-40%10-20सस्ताई और स्थिर सप्लाई
इराक18%न्यूनतमभौगोलिक निकटता
सऊदी10%कोई नहींलंबे अनुबंध
अमेरिका6%5-10हल्का क्रूड, विविधता

ये आंकड़े दिखाते हैं कि रूस का योगदान बेजोड़ है।

दोस्तों, रूस से कच्चा तेल का आयात सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि भारत की चतुराई की मिसाल है। ये हमारी जेब बचाता है, ऊर्जा सुरक्षित रखता है, और वैश्विक बाजार को स्थिर करता है। एक भारतीय के तौर पर गर्व होता है कि हमने संकट को अवसर में बदला। लेकिन याद रखें, ये रिश्ता मजबूत रखने के लिए सतत प्रयास जरूरी हैं। आपका क्या ख्याल है? कमेंट्स में बताएं!

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