कर प्रणाली में क्षमतानुसार भुगतान का सिद्धांत

कर प्रणाली में क्षमतानुसार भुगतान का सिद्धांत

कर प्रणाली की रीढ़ – क्षमतानुसार भुगतानः कर प्रणाली किसी भी देश की आर्थिक रीढ़ होती है। सरकार करों के माध्यम से धन जुटाती है, जिसका उपयोग सड़क, अस्पताल, स्कूल आदि सार्वजनिक सुविधाओं को प्रदान करने और सामाजिक कल्याण कार्यक्रम चलाने में किया जाता है। एक प्रभावी कर प्रणाली के लिए यह आवश्यक है कि वह न्यायपूर्ण हो। यहीं पर “क्षमतानुसार भुगतान” का सिद्धांत सामने आता है।

क्षमतानुसार भुगतान का क्या अर्थ है?

Ability-to-Pay Principle in Taxation System: क्षमतानुसार भुगतान का सिद्धांत यह कहता है कि करों का बोझ हर व्यक्ति या संस्था पर उनकी भुगतान क्षमता के अनुसार डाला जाना चाहिए। इसका मतलब है कि जिन लोगों की आय या संपत्ति जितनी अधिक होती है, उन्हें उतना ही अधिक कर देना चाहिए वहीं, कम आय या संपत्ति वाले लोगों पर कर का बोझ कम होना चाहिए।

क्षमता अनुसार भुगतान का सिद्धांत क्या है?

यह सिद्धांत इस सरल तर्क पर आधारित है कि करों का बोझ हर किसी पर उसकी भुगतान क्षमता के अनुसार ही डाला जाना चाहिए। जिस व्यक्ति या संस्थान की आय और संपत्ति जितनी अधिक है, उसे उतना ही अधिक कर देना चाहिए वहीं, कम आय वालों पर कर का बोझ कम होना चाहिए।

सरल शब्दों में कहें तो अमीर लोग गरीबों की तुलना में अधिक कर चुकाते हैं. इससे कर प्रणाली में सामाजिक न्याय कायम करने में मदद मिलती है। साथ ही, सरकार के पास विकास कार्यों और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के लिए पर्याप्त धन भी इकट्ठा हो पाता है।

क्षमतानुसार भुगतान के फायदे

  • सामाजिक न्याय: यह सिद्धांत कर प्रणाली में सामाजिक न्याय को बढ़ावा देता है। धनी वर्ग समाज के विकास में अधिक योगदान देता है, जो गरीबों और वंचितों के उत्थान में सहायक होता है।
  • आर्थिक समानता: क्षमतानुसार भुगतान से आय और संपत्ति की असमानता को कम करने में मदद मिलती है। धनी वर्ग से प्राप्त अधिक कर आय का उपयोग गरीबी उन्मूलन और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों में किया जा सकता है।
  • आर्थिक विकास को बढ़ावा: प्रगतिशील कर प्रणाली (जो क्षमतानुसार भुगतान पर आधारित है) से सरकार के पास अधिक राजस्व प्राप्त होता है। इस राजस्व का उपयोग बुनियादी ढांचे के विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश करने के लिए किया जा सकता है, जो आर्थिक विकास को गति देता है।
  • करदाताओं का अनुपालन बढ़ाना: जब कर प्रणाली को न्यायपूर्ण माना जाता है, तो करदाता स्वेच्छा से कर का भुगतान करने के लिए अधिक प्रेरित होते हैं। इससे कर चोरी कम होती है और सरकार को अधिक राजस्व प्राप्त होता है।

क्षमतानुसार भुगतान की सीमाएं

हालांकि क्षमतानुसार भुगतान का सिद्धांत एक आदर्श माना जाता है, लेकिन इसकी कुछ सीमाएं भी हैं:

  • कठिन कार्यान्वयन: किसी व्यक्ति या संस्था की वास्तविक भुगतान क्षमता का निर्धारण करना मुश्किल हो सकता है। आय और संपत्ति के अलावा, देनदारी, आश्रितों की संख्या आदि कारकों को भी ध्यान में रखना पड़ सकता है।
  • कर चोरी को बढ़ावा: उच्च कर दरों से बचने के लिए लोग कर चोरी का सहारा ले सकते हैं। इससे कर प्रणाली की दक्षता कम हो जाती है।
  • आर्थिक निवेश को हतोत्साहित करना: बहुत अधिक करों से निवेश कम हो सकता है, जो आर्थिक विकास को बाधित कर सकता है।

क्षमतानुसार भुगतान का उदाहरणः

आय स्लैब (रूपये में)कर दर (%)
2,50,000 – 5,00,0005
5,00,000 – 7,50,00020
7,50,000 – 10,00,00030
10,00,000 – 12,50,00030
12,50,000 – 15,00,00030
15,00,000 – 20,00,00030
20,00,000 से अधिक40

यह स्पष्ट है कि उच्च आय वाले व्यक्तियों पर कम आय वाले व्यक्तियों की तुलना में अधिक कर लगाया जाता है। यह क्षमतानुसार भुगतान के सिद्धांत का पालन करता है।

भारत में क्षमतानुसार कर भुगतान

भारत में आयकर प्रणाली क्षमतानुसार भुगतान के सिद्धांत पर आधारित है। आय के विभिन्न स्लैब पर अलग-अलग कर दरें लागू होती हैं। उदाहरण के लिए, कम आय वालों के लिए कर दर कम है, जबकि उच्च आय वालों के लिए कर दर अधिक है।

अतिरिक्त टिप्पणियाँ:

  • भारत में, कर प्रणाली को समय-समय पर बदल दिया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह क्षमतानुसार भुगतान के सिद्धांत का पालन करती है।
  • सरकार विभिन्न प्रकार के कर छूट और कटौती प्रदान करती है ताकि कम आय वाले व्यक्तियों पर कर का बोझ कम किया जा सके।
  • यह महत्वपूर्ण है कि करदाता कर कानूनों का पालन करें और समय पर कर का भुगतान करें।

निष्कर्षः क्षमतानुसार भुगतान का सिद्धांत कर प्रणाली का एक महत्वपूर्ण आधार है। यह कर प्रणाली में न्याय और समानता सुनिश्चित करने में मदद करता है। भारत में आयकर प्रणाली क्षमतानुसार भुगतान के सिद्धांत पर आधारित है, जिसके तहत उच्च आय वालों पर कम आय वालों की तुलना में अधिक कर लगाया जाता है।

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