रूस से भारत के तेल व्यापार की बढ़ती कहानी

रूस से भारत के तेल व्यापार की बढ़ती कहानी

दोस्तों, कल्पना कीजिए एक ऐसी दोस्ती जहां सस्ते दामों पर मिलने वाला कच्चा तेल न सिर्फ आपकी जेब बचाता है, बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था को रफ्तार देता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं रूस और भारत के तेल व्यापार की, जो यूक्रेन संकट के बाद एक रोलरकोस्टर राइड की तरह चढ़ता-उतरता रहा, लेकिन कुल मिलाकर ऊपर ही गया। एक आम भारतीय के लिए, जो रोज पेट्रोल पंप पर लाइन लगाता है, ये आंकड़े सिर्फ नंबर नहीं—ये हैं वो कहानी जो बताती है कि कैसे हमारी सरकार ने स्मार्ट डिप्लोमेसी से ऊर्जा संकट को अवसर में बदल दिया। मैं, एक हिंदी ब्लॉगर के तौर पर, इस बढ़ती कहानी को सरल शब्दों में खोलकर रखूंगा, ताकि आप न सिर्फ समझें बल्कि गर्व महसूस करें कि भारत कैसे वैश्विक ऊर्जा बाजार का नया खिलाड़ी बन रहा है। चलिए, शुरू करते हैं इस सफर को।

ऐतिहासिक जड़ें: रूस-भारत की पुरानी यारी, नई ऊर्जा

भारत और रूस का रिश्ता तो सोवियत दौर से गहरा है—सोचिए, 1971 की जंग में रूस ने कैसे हमारा साथ दिया था। लेकिन तेल व्यापार में ये बॉन्डिंग 2022 से पहले ज्यादा गहरी नहीं हुई थी। तब तक भारत अपनी 85 फीसदी ऊर्जा जरूरत आयात करता था, मुख्यतः मध्य पूर्व से—इराक, सऊदी अरब जैसे देशों से। रूस का हिस्सा? महज 1-2 फीसदी। लेकिन फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद पश्चिमी देशों ने मॉस्को पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए। यूरोप ने रूसी तेल बंद कर दिया, जिससे वैश्विक बाजार में क्रूड के दाम गिरे और रूस को नए बाजार ढूंढने पड़े।

यहां भारत ने मौका लपका। सस्ते दामों पर रूसी क्रूड—ब्रेंट बेंचमार्क से 20-30 डॉलर प्रति बैरल कम—हमारे रिफाइनरों के लिए वरदान साबित हुआ। कल्पना कीजिए, जैसे बाजार में डिस्काउंट सेल लगी हो और आप स्मार्ट शॉपर की तरह सबसे सस्ता सामान उठा लें। यही हुआ। 2022 के अंत तक रूस भारत का सबसे बड़ा तेल सप्लायर बन गया। ये सिर्फ व्यापार नहीं, रणनीतिक स्वायत्तता की मिसाल है—हम किसी के दबाव में नहीं झुकते, राष्ट्रहित पहले।

2022-2025: आंकड़ों की उड़ान, कैसे बदला तेल आयात का चेहरा

अब आते हैं असली रोमांच पर—वो आंकड़े जो बताते हैं कि ये व्यापार कैसे बूम हुआ। 2022 से पहले रूस से आयात नगण्य था, लेकिन संकट के बाद ये रॉकेट की तरह उड़ा। नीचे एक सरल टेबल में देखिए प्रमुख वर्षों के आंकड़े (स्रोत: विभिन्न ऊर्जा ट्रैकर्स जैसे CREA, Vortexa और Kpler से संकलित)। ये दिखाते हैं कि कैसे रूस ने इराक-सऊदी को पछाड़ दिया।

वर्ष/महीनारूस से औसत आयात (मिलियन बैरल प्रति दिन)कुल आयात में रूस का हिस्सा (%)प्रमुख टिप्पणी
2021 (पूरे साल)0.051%न्यूनतम, मध्य पूर्व पर निर्भरता
2022 (दिसंबर)1.020%पहली बड़ी छलांग, डिस्काउंट शुरू
2023 (फरवरी)1.635%रिकॉर्ड हाई, सऊदी-इराक से ज्यादा
2024 (जून)1.9740%चीन को पीछे छोड़ भारत टॉप बायर
2025 (पहली छमाही)1.6735-40%अमेरिकी दबाव के बावजूद स्थिर
2025 (जून)2.0842%11 महीने का हाई, 4.5 बिलियन यूरो का मूल्य

देखिए, 2022 में दिसंबर तक रोज 10 लाख बैरल (1 मिलियन) पहुंच गया आयात, जो 2023 में 16 लाख तक छलांग लगा। 2024-25 में ये 35-42 फीसदी हिस्सा पकड़ चुका। कुल मिलाकर, 2024 में द्विपक्षीय व्यापार 70.6 बिलियन डॉलर का रिकॉर्ड तोड़ चुका, जिसमें तेल का योगदान 80 फीसदी से ज्यादा। 2025 की पहली छमाही में भी 1.67 मिलियन बीपीडी रहा, जो पिछले साल से थोड़ा ज्यादा। जून 2025 में तो ये 2.08 मिलियन बीपीडी पर पहुंच गया—11 महीने का उच्चतम। क्यों? क्योंकि रूस ने यूरेल्स जैसे ग्रेड्स को 57 डॉलर सस्ता ऑफर किया, जबकि अमेरिकी तेल महंगा पड़ रहा।

ये आंकड़े सिर्फ नंबर नहीं, लाखों भारतीय परिवारों की कहानी हैं। सस्ता क्रूड आने से रिफाइनिंग कॉस्ट घटी, जिसका फायदा पेट्रोल-डीजल के दामों को स्थिर रखने में मिला। लेकिन हां, चुनौतियां भी रहीं—शैडो टैंकरों का इस्तेमाल, पेमेंट में रुपया-रूबल स्वैप। फिर भी, ये यात्रा प्रेरणादायक है।

अमेरिकी दबाव: ट्रंप की धमकी vs भारत की स्मार्ट डिप्लोमेसी

अब वो ड्रामा जो हर न्यूज चैनल पर छाया रहा—डोनाल्ड ट्रंप का भारत पर टैरिफ का डंडा। 2025 में ट्रंप ने दोबारा सत्ता संभाली, तो रूस से तेल खरीद को ‘युद्ध मशीन को फंडिंग’ बताकर 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ की धमकी दी। अगस्त 2025 में ये 50 फीसदी तक पहुंच गया। ट्रंप ने कहा, “भारत रूस को फायदा पहुंचा रहा, हम टैरिफ बढ़ाएंगे।” लेकिन भारत ने साफ लफ्जों में जवाब दिया: “राष्ट्रहित पहले, सस्ता तेल जहां मिलेगा, वहीं लेंगे।”

विदेश मंत्री जयशंकर ने मॉस्को में लावरोव से मिलकर कहा, “हमारा व्यापार असंतुलन कम करने के लिए फार्मा, कृषि एक्सपोर्ट बढ़ाएंगे।” वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने CNN-News18 पर बोला, “ये हमारा फैसला है—कीमत, लॉजिस्टिक्स देखकर।” ब्रिटेन में हाई कमिश्नर विक्रम दोराईस्वामी ने तो पश्चिम को आईना दिखाया: “आप खुद रूस से व्यापार करते हो, फिर दोहरा मापदंड क्यों?” रूस ने भी साथ दिया—पुतिन ने कहा, “हमारे पास तंत्र है, व्यापार रुकेगा नहीं।”

नतीजा? आयात में मामूली उतार-चढ़ाव आया, लेकिन रुका नहीं। जनवरी-फरवरी 2025 में थोड़ी कमी (1.47 मिलियन बीपीडी), लेकिन मार्च से रिबाउंड—1.85 मिलियन। ये दिखाता है कि भारत की ऊर्जा कूटनीति कितनी मजबूत है। भावुक होकर कहूं तो, ये वो पल हैं जब हम सोचते हैं—वाह, हमारा देश कितना आत्मनिर्भर बन रहा!

आर्थिक फायदे: जेब भरी, निर्यात बढ़ा, लेकिन चुनौतियां भी

सस्ता रूसी तेल सिर्फ बचत नहीं लाया, बल्कि रिफाइनिंग बूम भी। रिलायंस जैमिनगर रिफाइनरी ने 2025 में रूसी क्रूड का 50 फीसदी हिस्सा लिया, जिससे पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का निर्यात 14 फीसदी बढ़ा। अमेरिका को ही 1.4 बिलियन डॉलर का एक्सपोर्ट! विदेशी मुद्रा की बचत? अरबों डॉलर। पेट्रोल-डीजल के दाम स्थिर रहे, महंगाई पर काबू। उदाहरण लीजिए—2025 में यूरेल्स क्रूड 57 डॉलर सस्ता मिला, जिससे रिफाइनर्स ने प्रॉफिट मार्जिन बढ़ाया।

लेकिन सब गुलाबी नहीं। शैडो फ्लीट (गुप्त टैंकर) का इस्तेमाल पर्यावरण जोखिम बढ़ाता है। अमेरिकी टैरिफ से निर्यात प्रभावित हो सकता है। और हां, 2030 तक 100 बिलियन डॉलर व्यापार का लक्ष्य—फिर भी असंतुलन है, क्योंकि हम ज्यादा आयात करते हैं। फिर भी, ये फायदे इतने बड़े हैं कि चुनौतियां छोटी लगती हैं। सोचिए, अगर ये साझेदारी न होती, तो पेट्रोल 150 रुपये पार कर जाता!

भविष्य की राह: विविधीकरण और हरे ऊर्जा का बैलेंस

तो क्या ये कहानी यूं ही चलेगी? बिल्कुल, लेकिन स्मार्ट तरीके से। भारत अब अमेरिका, ब्राजील से भी तेल ले रहा—2025 की पहली छमाही में यूएस से 50 फीसदी बढ़ोतरी। लेकिन रूस प्रमुख रहेगा। 2030 तक लक्ष्य: द्विपक्षीय व्यापार 100 बिलियन। इसके लिए रुपया-रूबल पेमेंट मजबूत करेंगे, कोयला-गैस व्यापार बढ़ाएंगे। साथ ही, सोलर-विंड जैसी रिन्यूएबल पर फोकस—तेल निर्भरता घटानी है। ये बैलेंस ही भारत को ऊर्जा महाशक्ति बनाएगा। उत्साहित हूं सोचकर कि आने वाले साल कैसे होंगे!

दोस्तों, ये बढ़ती कहानी सिर्फ आंकड़ों की नहीं—ये हमारी स्वतंत्रता, स्मार्टनेस की जीत है। अगर आपको पसंद आया, तो कमेंट में बताएं कि तेल व्यापार पर आपकी क्या राय है? शेयर करें, ताकि और लोग जागरूक हों।

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